Śrīkoṣa
Chapter 6

Verse 6.225

अप्राकृततनुं शान्तं वासुदेवं परात्परम् ।
चतुर्भुजमनुध्यायेच्छुद्धस्फटिकनिर्मलम् ॥ २२७ ॥